NOT KNOWN FACTS ABOUT अहंकार की क्षणिक प्रकृति: विनम्रता का एक पाठ

Not known Facts About अहंकार की क्षणिक प्रकृति: विनम्रता का एक पाठ

Not known Facts About अहंकार की क्षणिक प्रकृति: विनम्रता का एक पाठ

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प्र: जी। छोड़ने का तात्पर्य वो नहीं था।

इस प्रकार का रूपांतर दूसरे शब्दों में भी होता है। जैसे- बादल, बादर, बदरा,

आचार्य: आप बस अपनी जॉब नहीं छोड़ सकते, ये असंभव होगा। अगर आप वो ही बने रहे जो आप हैं, तो आप कभी अपनी जॉब नहीं छोड़ पाएँगी। आपको बहुत कुछ छोड़ना पड़ेगा अपनी जॉब छोड़ने से पहले। अभी आप जैसे हैं, आप बहुत सारी चीज़ों से जुड़े हुए हैं और उसमें आपकी नौकरी भी शामिल है। अगर आप सौ चीज़ों से जुड़े हुए हैं और आपकी नौकरी उनमें से एक है, तो आप अपनी नौकरी कैसे छोड़ देंगे बिना बाकी निन्यानवे चीज़ों को छोड़े हुए?

आचार्य: अहम् को तो सुलाना पड़ता है click here कि अहम् सो जाए तो फिर शरीर की रक्षा की जाए। अहम् इतना होशियार है कि वो किसी की भी रक्षा कर सके? अपनी तो कर नहीं पाता। हाय, हाय। हर समय तो उसको चोट लगती रहती है, देखा है? अहम् से ज़्यादा घायल, चोटिल कोई देखा है?

आचार्य: यहाँ सब परेशान करते हैं तुमको। वहाँ पर पेड़ तुमको कहने थोड़ी आता है कि, ‘चल, सैटरडे (शनिवार) हैं, दारु पीते हैं'!

तो पहली बात तो ये है कि सही दिशा जाने की कामना है और दूसरी बात उसमें ये कि सही दिशा जाना है, उधर अब अपने बूते जाया नहीं जा रहा — ये प्रार्थना है। ‌’अब अपने बूते जाया नहीं जा रहा’, जिसने ये स्वीकार कर लिया वो प्रार्थी हो गया।

प्र: इसके अतिरिक्त होम-लोन या अन्य लोन (क़र्ज़) चुकाने के कारण लोग फँसे रहते हैं।

का उदाहरण ले सकते हैं, जिनके पास अपने इलाज तक के लिए यथेष्ट पैसे नहीं थे।

भाई, तुम किसी डॉक्टर (चिकित्स्क) के पास जाओ और तुम्हारे पेट में बहुत बड़ा फोड़ा है। वो बोले, "फोड़ा तो हट जाएगा लेकिन साथ में तुम भी हट जाओगे।" तो तुम अपनी सर्जरी (शल्य-चिकित्सा) करवाओगे? तुम चाहते हो कि फोड़ा हट जाए, तुम बचे रहो। ये ही चाहते हो न?

आप आपसे बहुत ज़्यादा बड़े हैं। आप अहंकार भी हैं, आत्मा भी हैं। अहंकार इत्तु! (उंगलियों द्वारा छोटा सा आकार बताते हुए) आत्मा…!

जैसे इस प्रसन्ना (पास बैठे एक श्रोता) को ये भ्रम हो जाए कि ये जो इसने टीशर्ट पहन रखी है ये इसकी खाल है। अब छः-सौ साल हो गए हैं और भयानक बदबू मार रही है टीशर्ट , ये उतारने को राज़ी नहीं है। क्यों नहीं उतार रहा?

यही 'मैं' जब बोले, 'मैं आज़ादी चाहता हूँ', तो ये अच्छा है। यही 'मैं' जब बोले कि अरे छोड़ो न! बंधनों में भी बड़ा मज़ा है, तो ये बुरा है।

मित्रों से हॉकी स्टिक उधार माँग कर वे खेलते थे। जब उनके बड़े भाई को भारतीय कैंप

आचार्य जी: बहुत चीज़ें हो सकती हैं। आप रोहित जी से सम्पर्क में हैं, तो इस बारे में और आगे बात करिएगा। ये काम आवश्यक है। हम ख़ुद इसको बढ़ा रहे हैं जितना कर सकते हैं। संसाधनों की अभी कमी है तो ऑनलाइन तरीक़े से ही ज़्यादा बढ़ाते हैं पर ज़मीनी काम भी होना आवश्यक है। आप इसको बढ़ाना चाहते हैं, तो शुभ बात है।

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